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पुस्तक समीक्षा



आख्या :- १०८४वें  की माँ

लेखक :- महाश्वेता देवी               

रूपान्तरकार :- सांत्वना निगम

प्रकाशक :- राधाकृष्ण

मूल्य :- रु.२५०.००

ISBN :- 978-81-7119-351-6

परिग्रहण संख्या :- 1551

१०८४वें की माँ मैग्सेसे पुरस्कार विजेता महाश्वेता देवी द्वारा लिखित १०८४ की माँ का हिंदी रूपांतरण है I

लेखिका स्त्री अधिकारों, दलितों, तथा आदिवासियों के हितों के लिए जूझते हुए व्यवस्था से संघर्ष किया तथा इनके लिए सुविधा तथा न्याय के लिए मार्ग प्रशस्त किया I इस उपन्यास में नक्सल आन्दोलन को माँ की नज़र से देखा गया I भारत जैसे पुरुष प्रधान समाज में नारी की दयनीय स्थिति का जीवंत चित्रण किया गया है I मातृत्व को प्राप्त करना – एक मिथक है I औरत को केवल जन्मदात्री तथा पालनकर्ता के रूप में माना गया है I औरत पहले बेटी, पत्नी, माँ बनती है I मातृत्व की प्राप्ति सुखद अनुभूति होती है किन्तु सुजाता प्रसव वेदना से कराहते हुए डॉक्टर के पास अकेले जाती है I

व्रती इस उपन्यास का मुख्य पात्र है जो अभिजात्य वर्ग का लड़का था जिसे भौतिक सुखों की कोई कमी नहीं थी I फिर ऐसा क्या हुआ जो मुक्तिदशक में १०८३ जनों के बाद ८४ नं. पर उसका नाम है ? वो क्यों शामिल ऐसे गिरोह में , ये तब्दीलियाँ उसमें क्यों आयी ? ये सवाल उसकी माँ को बेहद परेशान कर रही थी I उसकी माँ व्रती के जीवित रहते उसे समझ नहीं पायी I उसका अपराध बस इतना ही था कि समाज इस व्यवस्था पर से उसका विश्वास उठ गया था I सम्पूर्ण उपन्यास महज एक विशिष्ट कालखंड का दस्तावेज नहीं, विद्रोह की कहानी है I यह करुण ही नहीं क्रोध का भी जनक है I व्रती जैसे लाखों नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत भी I क्योंकि जो उसका जन्मदिन है वही उसका मृत्युदिवस भी है I

इस उपन्यास का कई भाषाओँ में रूपांतरण किया गया है I

 

                                   द्वारा - डॉ सुलेखा कुमारी

पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय रोहिणी से 8

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